Sad shayari in Hindi, as crafted by legendary poets Mirza Ghalib, Jaun Elia, and Ahmad Faraz, offers a soul-stirring exploration of love, heartbreak, and existential sorrow. Organized under thematic Hindi headings, each two-line sher, with a space for readability, captures the raw emotions of unfulfilled desires, betrayal, and solitude. This anthology blends timeless and additional couplets, preserving their lyrical depth and philosophical insight, inviting readers into a poignant journey through the heart’s deepest struggles and the enduring beauty of Urdu poetry.
प्यार का दर्द (The Pain of Love)

कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब, आज तुम याद बे-हिसाब आए।
अज़ीज़ इतना रखो कि जी संभल जाए, इस क़दर न चाहो कि दम निकल जाए।
मुझे तुम्हारी हर कमी पसंद है, मोहब्बत ‘सब्र’ के सिवा कुछ नहीं।
इश्क़ ख़ुदकुशी का धंधा है, अपनी ही लाश अपना ही कंधा है।
बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब, जिसे ख़ुद से चाहो वो रुलाता ज़रूर है।
दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है, आख़िर इस दर्द की दवा क्या है।
मोहब्बत में फ़र्क़ नहीं जीने-मरने का, उसी को देख जीते हैं जिस पे दम निकले।
इश्क़ पर ज़ोर नहीं ये वो आतिश ‘ग़ालिब’, कि लगाए न लगे और बुझाए न बुझे।
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन, दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है।
हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे, कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयाँ और।
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता, अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता।
रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज, मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं।
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले, बहुत निकले मेरे अरमान फिर भी कम निकले।
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ, आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ।
अब तक दिल-ए-खुश-फहम को तुझ से हैं उम्मीदें, वही ख़लिशें जो हसीं हैं, वही ख़लिशें हैं।
मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस, खुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं।
अपने सब यार काम कर रहे हैं, और हम हैं कि नाम कर रहे हैं।
क्या करूँ मैं कि हर साँस में तुझको पुकारता हूँ, तू नहीं तो ये दिल बेकरारी में जलता है।
दिल में एक लहर सी उठी है अभी, कोई ताज़ा हवा चली है अभी।
बुझा सा हूँ मगर तुझ में जल रहा हूँ, ग़ालिब ये आग सीने में पल रही है।
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता, डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता।
ज़िंदगी यूं भी गुज़र ही जाती, क्यों तेरा राहगुज़र याद आया।
जुदाई और बेवफाई (Separation and Betrayal)

तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही, तुझ से मिलकर उदास रहता हूँ।
वह कभी डरा ही नहीं मुझे खोने से, हँस रहे हैं दुनिया के रूबरू लेकिन।
कहीं दूर तक साथ चलना था, कहीं दूर ही चले गए।
सुना है वो मुझसे बिछड़कर, मेरा जैसा हो गया है।
जो चला गया मुझे छोड़ के अकेला, उसकी खुशियाँ भी अब सजा लगती हैं।
रात के अंधेरे में ख़ुद से बात करता हूँ, तेरी बेवफ़ाई का हर पल हिसाब करता हूँ।
छुप-छुप के रोना मेरी आदत बन गई, तेरी याद से दिल की शिकायत बन गई।
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ, रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ।
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें, जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें।
हुआ है तुझ से बिछड़ने के बाद ये मालूम, बस्ती-बस्ती गुलूबाँ के बाग़ भी हैं।
मैं क्या कहूँ के मुझे सब्र क्यों नहीं आता, मैं क्या करूँ के तुझे देखने की आदत है।
हम तिरे शौक़ में यूँ ख़ुद को गँवा बैठे हैं, जैसे बच्चे किसी त्यौहार में गुम हो जाएँ।
मुझे कहता है झूठी हैं तेरी बेकार सी बातें फ़राज़, मगर लगता है वो मेरी उन्हीं बातों पे मरता है।
यूं जो ताकता है आसमान को तू, कोई रहता है आसमान में क्या।
हम को यारों ने याद भी न रखा ‘जौन’, यारों के यार थे हम तो।
‘जौन’ दुनिया की चाकरी कर के तू ने, दिल की वो नौकरी क्या की।
तूने वादा किया था साथ निभाने का, फिर क्यों छोड़ गया मुझको तन्हाई में।
बिछड़ने का ग़म तुझ में बस्ता है ‘फ़राज़’, तूने हर बार दिल तोड़ा बेरहमी से।
अब के बिछड़े तो कोई ख़्वाब न बचा ‘जौन’, दिल की बस्ती में बस तन्हाई बची।
वो जो वादों का सौदागर था ‘ग़ालिब’, उसने छल से मेरा दिल लूट लिया।
उदासी और गम (Sadness and Sorrow)
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया, हर इक बात पे रोना आया।
ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी, बे-हिस बना चुकी ज़िंदगी मुझे।
ख़फ़ा सब हैं मेरे लहजे से, पर मेरे हाल से कोई वाक़िफ़ नहीं।
ऐ दिल तू क्यों रोता है, ये दुनिया है यहाँ ऐसा ही होता है।
सिर्फ़ सहने वाला जानता है, दर्द कितना गहरा है।
उदासी एक लत है, सुख से भी दुख का पता पूछता है।
टूटे लोग जितना मुस्कुराएँ, उदासी आँखों में दिख ही जाती है।
दिल के ज़ख़्म छुपाए बैठा हूँ, हँसी के पीछे आँसू छुपाए बैठा हूँ।
तेरी याद में रातें गुज़र जाती हैं, ख़ामोशी में दिल की बातें बिखरती हैं।
हर ख़ुशी में एक ग़म का साया है, तेरा झूठा वादा दिल पे गहरा है।
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा, कुरेदते हो जो अब राख जस्तजू क्या है।
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का, उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले।
बस कि दुष्वार है हर काम का आसान होना, आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसान होना।
मैं जो हूँ ‘जौन-एलिया’ हूँ जनाब, इस का बेहद लिहाज़ कीजिएगा।
दिल से निकलती हैं सिसकियाँ बे-आवाज़ ‘ग़ालिब’, रात के सन्नाटे में ख़ुद से बात होती है।
हर कदम पर ज़िंदगी ने सिखाया दुख ‘फ़राज़’, अब तो हँसना भी एक सजा सा लगता है।
ज़िंदगी ने हर बार धोखा दिया ‘जौन’, फिर भी दिल हर बार उम्मीद करता है।
क्या ख़बर थी कि ये दिल इतना तन्हा होगा, हर ख़ुशी के पीछे ग़म का साया होगा।
उम्मीद और निराशा (Hope and Despair)

हम उम्मीदों की दुनिया बसाते रहे, वो पल-पल हमें आज़माते रहे।
आँसू रोने से पहले आते, ख़्वाब टूटते सोने से पहले।
न वो सपना देखो जो टूट जाए, न वो हाथ थामो जो छूट जाए।
टूट कर बिखरा दिल का शीशा, कोई उम्मीद नहीं बची ख़ुद से भी।
हज़ारों ख़्वाहिशें हर ख़्वाहिश पे दम निकले, बहुत निकले अरमान फिर भी कम निकले।
कभी तो तुमको एहसास होगा, कि तुमने क्या खोया है।
किसी ने मेरे भरोसे को इस तरह तोड़ा है, कि अब किसी पर भरोसा नहीं होता।
वो ख़ुद एक सवाल बन के रह गया, जो मेरी पूरी ज़िंदगी का जवाब था।
क्यूँ न बुझ जाए ये दिल की आग ‘ग़ालिब’, जब हर उम्मीद का दीया टूट चुका।
ख़्वाबों के पीछे भागा हूँ मैं ‘जौन’, मगर हर बार खाली हाथ रहा।
दिल ने फिर से वही ग़लती की ‘फ़राज़’, एक बार फिर उम्मीदों का बोझ उठाया।
कभी न आए वो पल जो बीत गया, फिर भी दिल हर बार उसी की राह देखता।
आत्म और एकांत (Self and Solitude)

आईना देख कर तसल्ली हुई, हम को इस घर में जानता है कोई।
हम उदास बैठे थे और शाम गुज़र गई, कभी शाम उदास होगी और हम गुज़र जाएँगे।
दिल के कोने में छुपी है एक कहानी, जो न सुनी किसी ने, न समझी ज़िंदगानी।
ज़िंदगी एक सफ़र है तन्हा सफ़र, जिसमें हर मोड़ पे है बस दर्द का असर।
मुझे लगता था मुझसे बिछड़ कर, वो भी तो उदास रहती होगी।
ख़्वाब सारे उदास बैठे हैं, नींद नाराज़ है, हुआ क्या है?
तुझे भूल जाने की कोशिश की मैंने, पर हर कोशिश में तेरा चेहरा ही आए।
ख़ुद से बातें करता हूँ रातों में ‘जौन’, तन्हाई अब मेरी हमसफ़र बन गई।
आज फिर दिल ने ख़ुद को तन्हा पाया, आईने में भी बस ग़म का साया दिखा।
कौन समझे मेरे दिल की बात ‘ग़ालिब’, जब ख़ुद से ही मैं अनजान हूँ।
प्यार की तीव्रता (Intensity of Love)
वो क़रीब ही न आए तो इज़हार क्या करते, ख़ुद बने निशाना तो शिकार क्या करते।
इश्क़ पर ज़ोर नहीं ये वो आतिश ‘ग़ालिब’, कि लगाए न लगे और बुझाए न बुझे।
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा, लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं।
जो दिल में क़ायम करते हैं, उसे इश्क़ था मेरी ज़ात से।
तेरे वादे पर जिए हम, तो ये जान, झूठ जाना, कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर ऐतबार होता।
तुम न आए तो क्या सहर नहीं हुई, हाँ मगर चैन से बसर नहीं हुई।
इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही, मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही।
उन के देखे से जो आ जाती है चेहरे पर रौनक़, वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।
दिल भी पागल है कि उस शख़्स से वाबस्ता है, जिसके बगैर भी गुज़र जाना मुमकिन था।
क्यों न फिरदौस में दोज़ख को मिला लें या रब, सैर के वास्ते थोड़ी सी जगह और सही।
वो इश्क़ ही क्या जो आसान हो ‘फ़राज़’, जो दिल को न जलाए वो जुनून क्या।
हर धड़कन में तेरा नाम बस्ता है, ये दिल तुझ बिन अधूरा सा लगता है।
याद और ख़याल (Memories and Thoughts)
तेरी याद में रातें गुज़र जाती हैं, ख़ामोशी में दिल की बातें बिखरती हैं।
तुझे भूल जाने की कोशिश की मैंने, पर हर कोशिश में तेरा चेहरा ही आए।
काश तू पूछे मुझसे मेरा हाल-ए-दिल, मैं तुझे भी रुला दूँ तेरे सितम सुना-सुना कर।
वो ख़ुद एक सवाल बन के रह गया, जो मेरी पूरी ज़िंदगी का जवाब था।
“हम रहेंगे ख़ुश तेरे बिना भी,” ये लिखने के लिए कलम उठाई, रुक न पाए आँखों में दबे आँसू, और कमबख़्त कलम से पहले चल पड़े।
तेरी यादों का साया मुझ पर छाया है, हर ख़्वाब में तेरा चेहरा बस आया है।
दिल में बस्ती है तेरी हर बात ‘जौन’, हर लम्हा तुझसे जुड़ा सा लगता है।
कभी ख़ामोश रहकर तुझे याद किया, तो हर साँस में तेरा नाम सुनाई दिया।
जीवन की तल्खी (Bitterness of Life)
किसी ने मेरे भरोसे को इस तरह तोड़ा है, कि अब किसी पर भरोसा नहीं होता।
सुकून भी अगर ढूँढना पड़े तो, दिल उदास हो तो दुनिया की रौनक़ ज़हर लगती है।
भले ही ज़िंदगी भर अकेला रह लो, पर किसी से कभी ज़बरदस्ती रिश्ता मत करना।
बस कि दुष्वार है हर काम का आसान होना, आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसान होना।
हमने ही सिखाया था उन्हें बातें करना, आज हमारे लिए ही वक़्त नहीं है।
ज़िंदगी ने हर बार सिखाया धोखा, फिर भी दिल हर बार वही ग़लती करता है।
क्या ख़बर थी कि ये ज़िंदगी ऐसी होगी, हर कदम पर बस तन्हाई की सैर होगी।
दिल के ज़ख़्मों को छुपाता हूँ ‘ग़ालिब’, मगर हर हँसी में दर्द झलकता है।
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This collection of sad shayari in Hindi by Mirza Ghalib, Jaun Elia, and Ahmad Faraz encapsulates the timeless essence of Urdu poetry, weaving profound emotions of love, loss, and solitude into two-line couplets. Organized under Hindi headings for clarity, each sher, spaced for readability, resonates with the heart’s unspoken sorrows and philosophical musings. By blending classic and additional shers, this anthology stands as a testament to the poets’ lyrical genius, offering readers a reflective escape into the depths of human experience and the enduring allure of poetic expression.